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हे ! आदिम तू धरती पुत्र है तू कभी हार नहीं सकता तेरे तन के खून में नहीं मन में है खोट खून तो बनता ही बनता है क्योंकि अंतहीन आहार नाल में दो जून की रोटी जो सरकती है। खिला दे मन को पूर्वजों की वीरगाथा दिखा दे मन को अनंत भविष्य का उजाला तू धरती पुत्र है तुझे हरा-भरा रहना ही पड़ेगा एक कदम बढ़ाना ही पड़ेगा। हे ! आदिम तू धरती पुत्र है तू कभी हार नहीं सकता तूझे डर किस बात का तुम्हें तो सिर्फ विषहीन संपोले से लड़ना है पूर्वजों ने तो विषधर को लताड़ा है मन को काबू रख अपनो में अपना प्यार बाँट यही तो तेरे मन की खूराक है यही तो तेरे तन की खूराक है। हे ! आदिम तू धरती पुत्र है तू कभी हार नही सकता तुझे सिर्फ जागना है धर्म-अधर्म ऊँच-नीच जात-पाँत की गहरी नींद से इसके बिना मन को खूराक तन को खूराक कहाँ से।