लायब्रेरी की किताबें लौटाने के लिए मैं बाहिर निकला था। मुझे देखते ही मेरा
पड़ोसी बोला - " लगता है , तुम लायब्रेरी जा रहे हो ? "
" लायब्रेरी ही जा रहा हूँ , तुमने सही अनुमान लगाया है। "
" मेरा बेटा वहीं होगा , लौटते समय उसे अपने साथ लेते आना। उसे गए बहुत समय हो गया है। "
" लेता आऊँगा। "
मैंने पड़ोसी के बेटे को लायब्रेरी के बड़े हाल में देखा। वह नज़र नहीं आया। सोचा कि घर लौट गया है।
दूसरे कमरे में मैं गया। एकांत कोने में मुझे उसका सिर नज़र आया।
एकाग्रता में शायद वह पढ़ रहा है। इस छोटी आयु में इतने अच्छे लक्षण ! मुझे
लोकोक्ति याद आ गयी - ` होनहार बिरवान के चिकने - चिकने पात। `
मैं उसके पास गया , वही था। उसकी पीठ के ऊपर से मैंने झाँका। मैं
हक्का - बक्का रह गया। एक टॉपलेस अभिनेत्री की तस्वीर में उसकी आँखें
गढी हुयी थीं
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