![]() |
मुखपृष्ठ |
हां मैं सिर्फ एक हाउसवाइफ ही तो हूँ समाज की नजरों में जिसका कोई वजूद नहीं । सपनों को आंखों में बसाए , ख़्वाबों को दिल में छिपाए कब बड़ी हो जाती है लड़की उम्र का पता ही नहीं लगता। बांध दी जाती है एक खूंटे से , बिना उसकी मर्जी जाने विदा हो जाती है उम्र से पहले अपनी खुशियों का गला घोंटे । उम्मीदें होती हैं हजारों सबको चाहे बड़े हों या छोटे , ओढ़कर शर्म का गहना रहती है सपनों से आंख मींचे आ जाते हैं गोद में जब फूल भूल जाती है ख़्वाबों की abcd बन जाता है मकसद सींचना , दुनिया को अपनी ख़्वाबों में समेटे । कहने को तो बेगार हूँ , सिर्फ आराम की तलबगार हूँ । उठता है दर्द पोर पोर में, सहने है फिर भी तानों के कशीदे । चर्चे हैं आजकल बहुत मेरे , क्या गली घर और बगीचे । आराम ही आराम है जिंदगी में देखो वो हैं अब जिम्मेदारियों से छूटे । काश सीखा होता दुनिया से , गप्प मारकर जिंदगी जीना । न होते अरमान फना हमारे हम भी जी पाते झूठा मुखौटा लपेटे ।