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मुद्दई के पक्ष में, # मैं तभी बोलता हूँ जब मुझे लगता है मेरे मौन से बेहतर होंगे मेरे शब्द # मैं सहानुभूतियों को शुभ मुहूर्त देखकर ही निकालता हूँ बाहर बन्द तिजौरी से नाहक , अनायास कोई बिना हक के न छीन ले मुझसे बचे -खुचे प्रेम-दया के भाव.... # यूँ तो मुझे बार-बार काठ की हांडी चढाने वालों से होती है नफरत अलग -अलग खिचड़ी पकाने वालों से होता है कोफ्त जी उचटा रहता है भगोड़ों से चाहे वे भागे हों प्रेम की असफलता में , कर्ज की देनदारी में, धोखाधड़ी,गद्दारी में या सजायाप्ता मुकदमे की खौफ से # ये जानते हैं , इस मुल्क में अर्जियां लगाने की है छूट कहीं भी ,कभी भी माफी-नामा लिख दो सुनवाई मुद्दई के पक्ष में, हो ही जाती है देर-सबेर ##