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सुनता नहीं फ़रियाद कोर्इ हुक्मरान तक शामिल है इस गुनाह में आलाकमान तक मिलती नहीं ग़रीब को इमदाद कहीं से इस मामले में चुप है मेरा संविधान तक फूटे हुए बरतन नहीं लोगों के घरों में उसके यहाँ चाँदी के मगर पीकदान तक उससे निजात पाने का रस्ता बताइये जो बो रहा है विष जमीं से आसमान तक ये और बात है कि कोई बोलता नहीं पर , शान्त भी नहीं है कोई बेजु़बान तक जनता जो चाह ले तो असंभव नहीं है कुछ इन पापियों का खत्म हो नामोनिशान तक