मौत का खेलने वालो, तुम जीवन से क्यों जलते हो,
छुप-छुप कर तुम वार हो करते, सामने आने से डरते हो ।
रक्त बहा कर निर्दोषों का, कहो तुम्हे क्या पाना है,
जीत नहीं ऐसे होती है, तुमको यही बताना है,
जीतना है तो मन को जीतो, नीच काम क्यों करते हो ।
धर्म नहीं कोई भी चलता, नफ़रत के व्यापारों से,
ले कर आये तो तुम ये सब, धर्मों के गद्दारों से,
वो तो बैठे ऊंचाईयों पर, तुम बेकार में मरते हो ।
दर्द नहीं अपनों का है ग़र, दूजे को दर्द क्यों देते हो,
सब का रक्त एक ही जैसा, ये क्यों नहीं समझते हो,
दूजे के घर में आग लगा कर, अंगारों पर चलते हो ।
स्वर्ग-नरक सब यहीं है बसता, बाद में कुछ न मिलता है,
कितनों ने यूँ जीवन को खोया, तुमको क्यों नहीं दिखता है,
राह कहीं जो नहीं ले जाती, उस राह पे तुम क्यों चलते हो ।