किस तरह आंसू संभालूं अंखड़ियों में
क्या समाएगा समुन्दर सीपियों में
फूल की हर पंखड़ी खंजर नुमा है
कैसी ये दहशत भरी है तितलियों में
दर्द की तहरीर ही लिक्खी गई है
जबसे आया है क़लम इन उंगलियों में
उनसे उम्मीदे-वफ़ा करते भी क्यूँकर
क्या लकीरें खींचते हम पानियो में
साज़िशें करते हैं दानिशवर जहां में
चल ऐ दिल जाकर रहें अब वहशियों में
क़ैद से महलों की छूटकर आए कैसे
धूप की चिड़िया मेरी इन खिड़कियों में
तलख्तर शहरों की है आबो-हवा भी
है मधुरता गाँव की बस इमलियों में
आशियाना तेरी यादों का जला दे
है कहां दमख़म ये 'नरगिस'बिजलियों में