बात बिगड़ी, ऐसी बिगड़ी कि बनाते न बनी
ज़िन्दगी रूठी यूँ रूठी कि मनाते न बनी
लोग सारे ही लतीफों के तलबग़ार मिले
गीत गाते न बनी शेर सुनाते न बनी
एक चिनगारी उठी उठ के बन गई शोला
आग फिर ऐसी लगी हमसे बुझाते न बनी
संगदिल वक़्त ने की दिल्लगी यूँ शामो-सहर
दूर जाते न बनी सिर को बचाते न बनी
हमने कुछ इस तरह से कर लिए करार कभी
बोझ काँधों पे लदे और उठाते न बनी