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वो चारों-पाँचों शराब में धुत होकर, सुबह से ही रावण का पुतला बनाने में व्यस्त थे। सब बराबर लगे हुए थे।
हँसी-मजाक का सफर जारी था। धीरे - धीरे हँसी-मजाक का सफर गाली-गलोच में तब्दील हो गया। कुछ देर बाद वो आपस में झगड़ने लगे। धीरे-धीरे बात बढ़ती गई, झगड़ने ने भयानक रूप धारण कर लिया।
कुछ देर बाद वहाँ का नजारा अजीबों-गरीब था, किसी के दाँत टूट गये, किसी का हाथ टूटा, किसी का पैर टूटा, किसी का सीर फूटा, किसी का क्या, किसी का क्या।
रावण का पुतला इस सारा दृश्य को ऐसे देख रहा था, जैसे वह पूछना चाह रहा हो कि आखिर रावण कौन? मैं या ये?