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ऊँची-ऊँची चार दीवारों से घिरी , भव्य गगन-चुम्बी अट्टालिकाओं का क्या लाभ ? जहां ,संवेदनाओं के कोमल महकते फूलों के लिए , जगह ही न हो ; सोने-चांदी से सुसज्जित उस सुन्दर डियोडी का क्या प्रयोजन जिसके दर से कोई दरवेश बिना दुआएं दिए खाली झोली लिए मुड जाये , अम्बर छूती गुम्बदों के नीचे भरे गोदामों का क्या फायदा ? जिनकी मुंडेर पर बैठी चिड़िया भूखी ही उड़ जाये ; और मुट्ठी भर दाने फैंकने के लिए , जिनके वाशिंदों के हाथ कांपने लगें ; ऐसी गगनचुम्बी अट्टालिकाओं से तो वह कुटिया ही महती होती है , जहाँ संवेदनाओं के कोमल फूल कुम्लाहते नहीं दरवेश बिना दुआएं दिए खाली नहीं मुड़ते; और चिड़िया मुंडेर पर भूखी नहीं फुदकती , सच तो यह है मेरे मित्र , घर बड़ा होने से कोई बड़ा नहीं होता दिल बड़ा होना चाहिए.....||