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हर एक शख़्स से अनबन है क्या किया जाए हमारे हाथ मे दरपन है क्या किया जाए अजब नहीं जो लिपटते हैं साँप दामन से हमारी देह ही चंदन है क्या किया जाए ये लोकतंत्र की कुर्सी ज़रूर है लेकिन ये अब भी राज सिंहासन है क्या किया जाए हमारे सर ने तो झुकने से कर दिया इन्कार जो झुक रही है वो गर्दन है क्या किया जाए न हथकड़ी है न बेड़ी हमारे तन पे 'असर' दिलो दिमाग़ पे बंधन है क्या किया जाए