ओ माँ ! वात्सल्यमयी
ममता की म
चन्द्रमा की मा
तूने चंदा से ही तो ली है
शीतलता मन की
तू मेरी चेतना,तू प्रवाहमयी
तू दीप आरती हर घर की |
तू गतिमयी,प्रेरणामयी
तेरे वरदहस्त के नीचे
पलते–बढ़ते तेरे ही सुत |
डगमग पग की तो
शक्ति है तू
तू ही तो है निर्मल निर्झर
कटुता का गरल है धोती,
मन के ज़ख्मों पर
चन्दन का मरहम
बन लगतीं,
फूलों की ख़ुशबू सी
घर-आँगन में बिखरी रहतीं
माँ! तू ही तो सरल-तरल |