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मेरा ख़त पढ़ कर भी क्या करोगे, बस दो अश्रु ही तो नयनों में भरोगे। मन की बात कहीं खुल न जाये, किसी से आंख मिलाते भी डरोगे। जो वादे किये, वो निभाये नहीं थे, उनकी सज़ा तुम कभी तो भरोगे। ‘अनिल’ की तो चलती नहीं जहाँ में, वही तो भरोगे, जो तुम करोगे ।