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नारी को अब कमजोर ना जानों है चर्चा गली गली । फिर भी आये दिन जाये कुचली वह गली गली । जग में माँ बहन बेटी सब की होती हर रिश्ते में रंग भरती नारी ही होती सब की लाडली प्यारी संस्कारी होती बेगानी जाये रौंदी हँसते लोग यहाँ अपनों पे आये क्यों सहन नहीं होती उनके दूषित संस्कारो की मैल धोने आई चली चली । अर्धअंग है नारी नर का ओ नादानों देह समझ सिर्फ तुम कुचलना जानो हर कन्या में है बसता रूप माँ का सुख चैन खुशहाली की मूरत मानों बाँटती दुनिया को सम्पति प्यार की वह खिली खिली । बुद्धि कुंठित क्यों किये हो अपनी नये रंगों में ढल गवाँ रहे जवानी हिकारत से क्यों देखो उसको तुम उसी में बसती काली दुर्गा भवानी जीवन दायिनी मातृ शक्ति में है वह ढ़ली ढ़ली । पुरूष बने हो पौरुष दिखाना सीखो उठे अँगुलि नारी पर उसे गिराना सीखो घर की नहीं समाज की भी इज्जत वह उसे पूरा मान सम्मान दिलाना सीखो । संसार की रचना में वह देती योगदान जाये न छली छली ।