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वो भीगी थी आज भी
बाहर से आ रही थी घर के भीतर
हाँ,घर के भीतर ही तो,,,
कॉलेज से निकलते ही बारिश ने घेर लिया था न उसे,
बिन मौसम की बरसात आज अचानक ही न जाने कैसे कहाँ से आयी थी दस मिनट के लिए ही तो,,
पर बेहद ही निर्दयी थी ये बारिश,
साथ अपने ले जो आयी थी वो अश्लीलतम जुमलों की भी बारिश,अभद्र नज़रों की बारिश,गुनहगार विचारों की बारिश ,जो उसके घर पहुँचते तक उसे कीचड़ से सरोबार कर चुके थी और जिसे वो धोती ही जा रही थी अपने अनरुके अश्कों से,
सोच के घोड़े भी बारिश के साथ तेज़ और तेज़ दौड़ने जो लगे थे कि
यदि वो लड़का होती तो क्या ऐसी ही होती??
क्या उसके भाई भी घर के बाहर ऐसे ही हैं??
क्या सब लड़के ऐसे ही होते हैं ??
क्या बेटियों को बारिश नसीब नहीं??
कि है
सिर्फ़ अश्कों की ही बारिश!!!!