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छुटपन में कम उम्र में जो लड़की दौड़ती रहती थी कित -कित खेल के बहाने और दौड़कर पार हो जाती थी समाज की नियम-धरम रेखा से जिसे खींचा है समाज के ही एक दल शासक मर्दों ने। वह लड़की ही अब बड़ी हुई है उम्र से अब वह डर रही है दौड़ना। डर ,समाज के उन शासक मर्दों से औरतों का विकास देखकर जिसकी सत्ता की कुर्सी थरथर काँप रही है। वह लड़की स्वतंत्र रहना चाहती है और हाथों से अनंत आकाश छूना चाहती है छोटी -बड़ी उँगलियों से पर कँहा ——– छू ही नहीं पा रही है। **कित -कित खेल =आदिवासी संताल खेला जाने वाला एक लोकप्रिय खेल।