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ज्ञान दो वरदान दो माँ। सत्य का संधान दो। कुटिल चालें चल रही हैं। पाप पाशविक वृतियां। प्रेम के पौधे उखाड़ें । घृणा पोषक शक्तियां। है तिमिर सब ओर माता, ज्योति का आधान दो माँ। ज्ञान दो वरदान दो माँ, सत्य का संधान दो माँ। सत्य के सपने सुनहरे। झूठ विस्तृत हैं घनेरे। पोटरी में सांप लेकर। फैले हैं अपने सपेरे। ज्ञानमय अमृत पिला कर, अभय का तुम दान दो माँ। ज्ञान दो वरदान दो माँ, सत्य का संधान दो माँ। अवगुणों की खान हूँ मैं। अहम,झूठी शान हूँ मैं। लाख मुझ में विषमताएं। गुणी तुम अज्ञान हूँ मैं। पुत्र तेरा चरण मैं है, सदगुणी संज्ञान दो माँ। ज्ञान दो वरदान दो माँ सत्य का संधान दो माँ चिर अहम को तुम हरो माँ। इस शिशु को तुम धरो माँ। यह जगत पीड़ा का जंगल। घाव मन के तुम भरो माँ। मैं शिशु तुम माँ हो मेरी, ज्ञान स्तनपान दो माँ। ज्ञान दो वरदान दो माँ, सत्य का संधान दो माँ।