![]() |
मुखपृष्ठ |
पेट की कविता में कांधे पर बीबी का शव रखे दाना मांझी है। अस्पताल में मौत से लड़ता आम आदमी है। कूटनीति के गलियारों में लटकती गरीब की रोटी है सैनिकों की पतली दाल है गोदामों में सड़ता अनाज है। सड़कों पर फिकती सब्जियां है। दूध के लिये बिलखता बच्चा है। सड़कों पर बहता दूध है। खेत की कविता में जमीन हड़पते बड़े किसान है। तड़पते भूमिहीन किसान है। साहूकारों के चुंगल है। बैंकों का विकास है। कर्जमाफी के लिए चिल्लाते अपनी फसलों को जलाते जहर खाते मरते किसान है। कविता खेत का दर्द गाती है। कविता भूखे पेट सुलाती है। पेट की कविता में दर्द है अहसास है। भूख है भाव है। खेत की कविता में किसान है सूखा है। कर्ज है फांसी है। मंडी हैं बोलियां है। निर्दोषों पर गोलियां है। कविता चाहे खेत की हो या पेट की हो। दोनों में दुख है दर्द है। आहत भरी गर्द है।