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क्यों ऊसर जमीन पर मैंने, आशाओं के बीज बहाए ? मायामय कुरंग के पीछे, क्यों मन के तुरंग दौड़ाए ? घोर अमा थी ,तम गहरा था । उर पट पे भय का पहरा था । क्यों ऐसी विपरीत दशा में विधु दर्शन को मन ठहरा था । हाय भला इस हठी हृदय के,बहकावे में हम क्यों आये ? क्यों ऊसर................................................... फिर बसंत सेमल बौराए। डाल डाल पे कुसुम सुहाए । देख अरुण शोभा फूलों की, दूर- दूर से पक्षी आये । गंध ,स्वाद से मुक्त पुष्प को देख,बहुत ही खग पछताये । क्यों ऊसर............................................... आस्तीन का साँप आदमी । पाप से बड़ा पाप आदमी । सारे जीव चर अचर व्याकुल, सिद्ध हुआ अभिशाप आदमी । विध्वंसक इंसान देखकर, नित्य यह धरा अश्रु बहाये । क्यों ऊसर .............................................