
बारिश को अब बचा लो तुम
सलिल सरोज
मुझे नहीं, इस बारिश को अब बचा लो तुम सालों से बेलिबास हैं, गले इसे लगा लो तुम कहते हैं कभी पूरे शबाब पे हुआ करती थी अब दिखती भी नहीं,फिर इसे बुला लो तुम ये सूखे पेड़,ये प्यासे पंछी और ये गर्म हवाएँ जो आस में हैं, उस बारिश को मँगा लो तुम हर एक बूँद को जिस ने बचा कर रखना था धूल पड़ी उस फाइल को कुछ चला लो तुम बारिश के बहाने आँखें आसमाँ देख लेती थी फिर से दीदार हो,कोई तरकीब लगा लो तुम किसी कोने,कहीं किसी गली में फँसी हुई है किसी बिछड़ी औलाद की तरह उठालो तुम