चौदह करोड़ देवता
जो रोज़ पूजे जाते हैं
लेकिन फिर भी सब मिलकर
इस मुल्क की गरीबी और भुखमरी को
दूर नहीं कर पाते हैं
इतने पर भी जनता
हर पाँचवें साल
नए देवता का चुनाव करने लगती है
या तो जनता
तरसने की आदी हो गई है
या फिर
सारे देवता तरसाने के आदी
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