
दोहे
अशोक दर्द
सौहार्द की धरती पर , बीजें कभी न खोट । ऐसे नेता ढूंढ कर , उनको देना वोट ।। पांच वर्ष के बाद फिर , बजी चुनावी तान सोच-विचार कर चुनना , मेंबर और प्रधान प्रेम की खेती कीजिए , तजकर घृणा द्वेष । बाकी तो मिट जाएगा , यही बचेगा शेष ।। देखो पर्वत -पुत्री ने, दिया यूं प्यार निभा । अपना निर्मल नीर दे ,हर घर दिया महका कभी सियासत मत रखो, तुम इस भगवान पे । हल रखने को हैं कंधे , ये "दर्द" किसान के ।। गुमसुम गुमसुम दिवस है, गुमसुम गुमसुम रात निर्धन लोग कहां करें ,अपने मन की बात ।।