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हाँ ,मैं पाजिटिव हूँ। जब कि घर में हैः टूटी दीवारे ,हिलते दरवाज़े, पैरों के नीचे फर्श पर किरचने, पलंग पर बिछी है बदरंग चादरें, कमरों की दीवारो पर सजी हैं शवेत शयाम तसवीरे, सतरंगे ,झीने ,झांकते पर्दे, लटके हैं नाम के। यहाँ वहाँ दिखता है उदासी का मकडजाल।।1।। हाँ मैं पाजिटिव हूँ। जबकि रसोई मे है। खाली खाली अन्न धान्य के डिब्बे, टूटी अलमारी मे पुराने बर्तन ढेरो, घी के डिब्बे मे कुछ गंधाता स्वाद, अशुद्ध है रोजमर्रा की दैनिक चीजें, धुआं धुआं भोजन कक्ष,तिलचट्टों की भरमार, टूटे बहते नल से, टपकता पानी हरबार खाने से ज्यादा ,बचाने का उपक्रम हर बार ।। हाँ मैं पाजिटिव हूँ जब कि रिश्तों मे है ठंडी, शुष्क, खुरदरी, आभाहीन दूरी सुबह से शाम तक सिर्फ मतलब के बोल नपे तुले,सोचे समझे, मंजे हुए शतरंज के मोहरो से आंखों मे आग,ताप,जलन व पाषाण सी दृष्टि हाथों का स्रपरश हीन एहसास, चेहरे पर कुटिल मुस्कान त्योहार पर महंगा उपहार, मिलने पर रूखा व्यवहार ।।। जी हाँ मैं पाजिटिव हूँ। जब कि देश मे है। हिंसा, आगजनी, बलात्कार,लूटपाट चहूँ और राज्य के प्रांतों मे जातिवाद सडकों पर दिनदहाड़े गरीब जनता का खुला शोषण जल,थल,नभ,सुरक्षा सब तार तार खोखले वादे,नियम कानून, सब कागजी संसार ।। जी हाँ मैं पाजिटिव हूँ। जब कि परमसत्ता है अपार धर्म के नाम फर दंगों की बहार ईश्वर के दरबार मे दौलत कि अंबार नाम धारी बाबाओ ,साधूओं का बनावटी अवतार बाजारी अवतारों की भ्रांतियाँ खनकदार अल्लाह और राम के बीच मानवीय महाभारत का झूठा व्यापार।। जी हाँ मैं पाजिटिव हूँ। जबकि युवा वर्ग मे है परीक्षा, साक्षात्कार, नौकरी, इंतजार का भ्रमजाल हर युवा के हाथों दिखता मात्र कालपनिक संसार शिक्षा के नाम पर खुली दुकानें हर द्वार, प्रश्न -उत्तर,वाक्य विन्यास परिभाषा की तोता रटन मे खोया नव संसार, धन दौलत, नाम दाम,उन्नति के चक्रव्यूह मे, खुद ही हसते हसते फसते अभिमन्यु हर बार।। जी हाँ मैं पाजिटिव हूँ। जब कि प्रकृति मे है बिषवास, अशुद्ध हवा पानी नभ थल सब बने नागपाश, चलते हैं औषधियों की लंबी उलझो तारों पर, मशीनी मानव की चाल ढाल हाव भाव, सब संचालित, समय बद् क्रमबद्ध ,भावबद्भ, सेवा,सहायता, सहृदयता, समानता शब्दकोश मे रखें मात्र ।। हाँ मैं पाजिटिव हूँ। जब कि इस सदी मे भी, बेटी, बहन,माँ ताई,चाची,मामी, सब आजभी शारिरिक लोलुपता के सुनती हैं राग, बीमार मानसिकता लिप्सा के नाम पर लुटती है उम्र के हर दौर मे बार बार, खुले ,ढके बदन वाली, हसती, रोती मूक बोलती लडकियां भी, करती हैं बातें धीरे से,जोर से, घर की,बाहर की,मंदिर की,बगीचे की,खुई बंद जगहों पर, कब-कब,कैसे-कैसे, टूटा भीतर का ताप, मान सम्मान, और अभिमान।।। हाँ मैं पाजिटिव हूँ। क्यों कि मैं जननी हूँ सृजना हूँ पृथ्वी स्वरूपा हूँ।।।
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