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आधे-अधूरे रिश्तों की बिसात बिछाए बैठे हो क्या चाल चलोगे पयादे से किस करवट ऊँट अब बैठेगा हर समय इसी उधेड़ बुन में अनवरत लगे तुम रहते हो कब शह दे दूँ कब मात मैं दूँ इस खेल में उलझे रहते हो इस लक्ष्य को पाने की खातिर सभी से कहते फिरते हो मैं तेरा हूँ तुम मेरे हो विश्वास नहीं क्यों करते हो ये माना मैं उन जैसा नहीं जो हरदम ही डूबते-उतरते हों शह-मात के खेल में पर इतना भी तो मूर्ख नहीं तेरी बात समझ न आयें मेरी पर भाती नहीं मुझको हैं ये शह-मात की बिसात यदि मैं भी लग जाऊँ इसी खेल को खेलने में तो तुम्ही कहो कोई रिश्ता कहाँ रह जायेगा तुम भी रहो और मैं भी रहूँ अपने अपने ही दायरे में और जीवन की महत्ता को व्यर्थ गवाँ बठें शह-मात के फेर में क्या कुछ ऐसा नहीं हो सकता कि मेरी मात भी तुम्हारी मात हो और तुम्हारी जीत भी मेरी ही जीत हो कभी अकेले में बैठ कर मनन करो