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रिश्तों को बस प्यार किया पर आज सभी घबराते हैं। खुद ऐसे कृत्यों को करके डरते और डराते हैं। पथ से भ्रष्ट हुआ हो कोई या चारित्रिक पतन हुआ, गिरकर स्वयं सम्हलते हैं पर कोई नहीं उठाते हैं। जब आती है आफत माँ पर सीमा हो या घर में ही, वीर पुरुष बलि देकर अपना माँ का कर्ज चुकाते हैं। जिसमें भर मकरंद शहद का पुष्प सुवासित करना था, ऐसे उपवन में कुछ भँवरे आ उत्पात मचाते हैं। राजनीति भी कितनी ओछी कैसे रंग 'विभात' दिखा, मिल जाए भोजन गिद्धों को नोच-नोच कर खाते हैं।