वही जुबां इधर है, वही जुबां उधर है,
समझ नहीं आ रहा, इंसानियत किधर है ।
जिन्दगी उलझा दीजिये, जिन्दगी सुलझाने में,
कोई भी रास्ता करो, अंत में तो कबर है ।
कुछ है नहीं जिस पर कभी सर उठायें फख्र से,
वो चाह ले तो रात है, वो चाहे तो सहर है ।
मुमकिन अगर होता कि तेरे दिल में क्या है जान लें,
तुझे लगता नहीं पता कभी, हमको सारी खबर है ।
अनजाने से जब लोग मिल जाते हमें किसी राह पर,
हम भूल जाते हैं कि ये तो हमारा शहर है ।