हमारी साफगोई को दिल्लगी समझ लिया,
सर हमने झुकाया, तो बंदगी समझ लिया ।
जुबां बंद ही रहती, ग़र तुम शुरुआत न करते,
हमारी चूप्पी को क्यों शर्मिंदगी समझ लिया ।
जिम्मेदार तो तुम्ही थे हमारी बर्बादी के,
हमने तो इसे ही है जिन्दगी समझ लिया ।
‘अनिल’ के ग़म कम न थे, न कम होंगे कभी,
मेरे आँसुओं को तुमने अदायगी समझ लिया ।
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