
आज ही के दिन हम हुये थे तेरे ले कर भरी सभा में फेरे इतने बरस बाद भी तुम्हारे समक्ष हो कर खड़े हम कुछ कुछ आज भी शरमा रहे हैं और ये हैं कि हमारे समकक्ष खुलकर मुस्कुरा रहे हैं अज़ब सयोग हैं ये बिना इत्र लगा इतरा रहे हैं हम सेंट से खरीदा परफयूम लगा अभी तक घबरा रहे हैं वैसे हमारी आपस में खूब पटती है कई बार बिना वज़ह ड़ाट भी पड़ती हैं अब तो काफी हद तक हालात भांप गया हूँ बिना इशारे कई चीज नाप गया हूँ खुश रहने के लिये बस हां में हां मिला देता हूँ अपनी गलती न भी हो तो मानवा लेता हूँ गृहस्थ जीवन का यही सफल पहलू सारा तो मैंने ही मानना हैं फिर भी कुछ कह लूँ हर घर और छत्त की यही कहानी मज़े में सब जब शाम सुहानी रात भले ही अंधेरी है सुबह की फिक्र मुझें हर वक़्त चिंता इसे मेरी है चिंता इसे मेरी है .......