![]() |
मुखपृष्ठ |
एक रिमझिम बरसता हो पानी या गिरती हो आटे सी महीन फुहार घर की खिड़की से आंगन में उछलती बूंदे देखंे सूंघें भूनी मक्की की भीनी ख़ुश्बू काले महीने में घर लौटी बहन से सुनें सास की बातें बचपन दोहराएं हंसते हुए रोएं रोते हुए हंसे आओ बरसात देखें। दो खिड़की में बैठ छत पर पड़ती टप टप सुनें देखेे बापू के माथे की गहराती लकीरें मां को रखते देखें जगह जगह कटोरी गिलास तसला या बाल्टी टपकती बूंदों तले सुनें टपाकड़े का संगीत मां, जो डरती है बरसात में टपाकड़े से सिंह से नहीं डरती, शेर से नहीं डरती भरता देखें खिड़की से बापू की चिंताओं का पोखर हम संगीत सुनंे आओ बरसात देखें। तीन घनघोर घटाओं में सहें बौछारों के बाण कच्चे घर की भीगती कन्धे भीगें, भीग कर सूखें फिर भीगें ऐसी भीगती रात में जागते हुए सोए सोते हुए जागें आओ बरसात देखें। चार इक पानी जो जीवन देता इक पानी जो जीवन लेता इक पानी गंगा में बहता इक पानी है लाशें ढोता इक पानी जो देव को चढ़ता इक पानी है नाली में बहता इक पानी जो मोती बनता इक पानी है विष में मिलता फिर भी पानी है पानी पानी में पानी की पहचान नहीं है जैसे आदमी में आदमी की पहचान नहीं है। पांच बूंद बूंद से रिसे घड़ा बूंद बूंद चढ़े मंदिर बूंद बूंद से बने दरिया बूंद बंूद है जीवन बूंद बूंद से भरे घड़ा बूंद बूंद समंदर छः बरसाता है पानी अम्बर नहीं देखता धरती की सीमा रिस नही पाता जब धरती में तब बहता है पानी हो जाता तब पानी ही पानी दुनिया बन जाती है फानी कहां से आता इतना पानी कहां को जाता इतना पानी। सात चलता हुआ संत बहता हुआ पानी कभी न मैला होवे जो जागे सो पावे जो सोए सो खोए। आठ कब बनता है पानी बादल कब बादल पानी यह तत जानें ज्ञानी जल में कुम्भ है कुम्भ में जल है बाहर भीतर पानी।