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रात तेरे पहलू में काटी थी सच में, बहुत हसीन सपना था मेरा तुझसे खुशियाँ अपनी बांटी थी लगा था, कोई तो अपना था मेरा आँख खुली तो एहसास हुआ न तू अपनी थी न जग था मेरा वही राहें, वही ग़म संग चले जिनसे दिल का रिश्ता था मेरा न कह सका, न कह सकूँगा शायद दिल जो भी कहता था मेरा तू तो क्या, कोई भी जान पायेगा नहीं शब्दों में जख्म रिसता था मेरा यूँ ही कट जायेगी जिन्दगी मौत तक किसी से कुछ कहना न बनता था मेरा