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मुज़रिम और उनके वकील मन ही मन हँस रहे थे,क्यौंकी वे अच्छी तरह जानते थे,कभी भी कोई भेड़,आज तक कुछ बोला है? फि़र आज बोलेगा?बजाय में एं एं एं.... पीडित भेड. को आश्वासन देते हुए जजसाहब ने कहा,देखो,किसी से भी बिना डरे आपके साथ जो कुछ भी हुआ,वह भरी अदालत में बताईए |लेकिन थर थर कांपता हुआ भेड़ ! सिर्फ ईतना ही बोला,में एं एं एं.... पुलिस की महेनत पे पानी फिरने लगा, लड रहे दिग्गज भी पूछपूछ के थक गए, लेकिन यह भेड़!बोला तो सिर्फ ईतना ही बोला, में एं एं एं.... अन्त में,पीछवाडे बैठा एक असफल वकीलखडा होकर बोला,जजसाहब में ईस भेड़ से सवाल पूंछ सकता हुं? जजसाहब बोले,आप? आप तो वकीलात से ज्यादा कविता ज्यादा करते हो!आप क्या साबित करवाएंगे?फिर भी पूंछिए!! और असफल वकील ने भेड़ से पूछा, एक कोने में धूल चाट रहे इस रोडो़ से बडा़ पहाड किसने बनाया? भेड़ बोला में एं एं एं.... अपने छोटे से झरने को छोडकर मृगजल को किसने गले लगाया? भेड़ बोला में एं एं एं.... झाडी में छिपकर अपनी अंतरात्मा पर छालों पर छाले किसने पडवाए? भेड़ बोला में एं एं एं.... प्राणघातक धमकियों से डरकर अपने होंठ किसने सिले? भेड़ बोला में एं एं एं.... रहरहकर जल भरे छलकाते कुंभ पर किसने कंकर फेंके? भेड़ बोला में एं एं एं.... जजसाहब बोले,बस बस इतना काफी है,लेकिन यह तो बताईए कि आप ईस भेड़ से यह सब कैसे उगलवा सके? असफल वकील बोला, 'साहब'दर्द की वकालत एक कवि ही अच्छी तरह कर सकता है,वकील नहीं|