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तुम्हारा जब कभी चर्चा हुआ है, गुबार-ए-दिल ज़रा धुँधला हुआ है। न पूछो दिल को मेरे क्या हुआ है, तुम्हारे हिज्र का मारा हुआ है। वो जब तक जल रहा था, धूप भी थी, कि सूरज शाम को तन्हा हुआ है। जिसे वो काटने आया था, थक कर, उसी की छांव में बैठा हुआ है। शब-ए-ज़ुल्मत की गहराई थी जितनी, सवेरा उतना ही उजला हुआ है। मनाने की जुगत बतलाओ यारो, मेरा दिलदार तो रूठा हुआ है। बिना रमज़ान के ईद आई "रोहित", नक़ाब-ए-यार थोड़ा वा हुआ है।