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मुकद्दर जहाँ में उसी का हुआ है! खुद पे ही जिसने भरोसा किया है!! जो भी चला है कांटों के पथ पर! फ़ूलॊ का ही फ़िर बिछौना मिला है!! हर इक खुशी को जिसने है पाया! गमों का उसी ने ही बोझा सहा है!! जीवन के विष को जिसने चखा हो! आखिर उसी ने ही अमृत पिया है!! हर दर्द जिनकी दवा बन गया हो! ज़ख्मों को अपने उसी ने सिया है!! अपना इरादा जो मज़बूत रखते! बुलंदी को फिर तो उसी ने छुआ है!!