कितना दर्द दिखाऊँ जग को, कि इसका एहसास करे,
कौन बढ़ाए ख़ुशियाँ मेरी, कौन जो दिल के पास रहे ।
रोज़-रोज़ इक जीवन जीता, रोज़-रोज़ इक मौत मरूँ,
कोई तो पल मिले ख़ुशी का, साँस हरेक ये आस करे ।
बढ़ती जाए बेल उम्र की, आए न कोई शाख़ नई,
रूखे-सूखे सावन बीते, बेरंगी मधूमास रहे ।
जीवन की नदिया बहनी है, और सागर में मिल जानी है,
मंज़िल तो सब की एक ही है, क्यों बेकार उदास रहे ।
इक दिन यादें उड़ जानी हैं, इक धुएँ में मिल जानी हैं,
न याद करो बीती बातें, बस आज पे ही विश्वास बने ।