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समता प्रभुता सब मिले, मिले सब जन बखान ईर्ष्या द्वेष छोड़ सबै ,बन जाओ इन्सान ग़ांव की रस्म छोड़ सब, बने शहरी बाबू ढूध मलाई छूट रब , चले शराब काजू बूंद बूंद कर तुम गिरो,जैसे हो बरसात मिट्टी पानी सा घुले,तेरा मेरा साथ लक्ष्य कठिन है जानकर, मत हारो तुम आस परिश्रम से आ जाएगी , मंजिल तेरे पास हसी देखकर क्यों लगे,अब दुख रहा न तोय भूल भुलैया जिन्दगी, समझ सका नहि कोय याद याद कर तुम मुझे कर देती बरबाद जीवन उलझन सा लगे ,कैसे हो आबाद मोबाइल के दौर में ,छूटे खत वत डाक सफेद कुरता पहनकर ,बन जाते है पाक