सीता देवी खुशी से फूली नहीं समायी जब उसके कानों में उसके भांजे मोहन के ये
मीठे - मीठे शब्द पड़े - " मौसी जी , वैष्णो देवी के दर्शन करने के लिए तैयार हो जाइए। परसों ही
हम चल पड़ेंगे , देखिये ये टिकटें। "
सीता देवी भले ही 70 पार कर चुकी थी और जवानों सा दमख़म उसमें नहीं था
लेकिन वैष्णो देवी के दर्शन वह एक बार अवश्य करना चाहती थी। उसने भांजे को अपनी बाँहों में भर
लिया।
कटरे से ले कर वैष्णो देवी की गुफ़ा तक रास्ता लंबा है। जय माता की घोष करते
सीता देवी ने भांजे के साथ चढ़ाई शुरू कर दी। दोनों के चेहरों पर उत्साह था। थोड़ा रास्ता तय हुआ
ही था कि सीता देवी की साँसे फूलने लगीं। भांजे ने देखा तो वह घबरा उठा। घबराहट में वह बोला -
" हम वापस चलते हैं।"
" नहीं , मुझे देवी के दर्शन करने हैं। "
"आपके लिए मैं टट्टू की सवारी का इंतज़ाम करता हूँ। "
" टट्टू पर सवार हो कर ही मैं देवी के द्वार पर पहुँची तो क्या पहुँची ? पैदल चल कर ही मुझे वहाँ
पहुँचना है। "
सीता देवी में जोश जागा और जय माता का लंबा हुंकारा ले कर उसने फिर चढ़ाई शुरु कर दी।
मौसी और भांजा निर्विघ्न वैष्णो देवी के द्वार पर पहुँचे। भांजा मौसी की इच्छा - शक्ति के आगे
नत मस्तक था।