
’’ गोपाल तुमने चोरी की है। जिस घर से तुम्हारी रोजी-रोटी चलती है, तुमने उसी घर में चोरी की। तुमको पुलिस के हवाले करना ही होगा। ’’ मालिक ने गुस्से से आँख फड़काते हुए कहा।
’’ नहीं नहीं मालिक, ऐसा मत किजीए, मेरी माँ बहुत बिमार है, वो यह सदमा बरदास्त नहीं कर पाएगी और मर जाएगी। ’’ गोपाल ने गीडगीड़ाते हुए कहा।
’’ नहीं नहीं तुमको तो मजा चखाना ही पड़ेगा। ’’
’’ मालिक मैंने जो आपका सामान चुराया है, आप ले लीजिये। पुलिस के हवाले मत कीजिये। ’’
’’ तुमको माफ कर दूँगा तो फिर मेरे ही घर में चोरी करेगा। ’’ मालिक ने दाँत किचते हुए कहा और अपने आदमी द्वारा पुलिस को फोन करवा दिया। गोपाल रो गीड़गीड़ा रहा था और पछता रहा था लेकिन मालिक पर उसके आँसुओं का कोई असर नहीं हो रहा था। दरोगा जी ने आते ही पूछा ’’ क्या बात है, क्यों बुलवाया है? ’’ मालिक जगत लाल ने दारोगा के हाथ से बेंत लिया और गोपाल की तरफ देखा तो गोपाल का खून सूख गया। जगत लाल ने अपनी हथेली पर बेंत मारते हुए कहा ’’ मनोहर का खूनी पकड़ा गया कि नहीं? ’’
’’ जल्द ही पकड़ लिया जाएगा। ’’ बोलकर दारोगा जी चाय पीने लगे और विदा लेकर चल पड़े। जगत लाल ने नजर दौड़ायी तो गोपाल कहीं नजर नहीं आया। जगत लाल को महसूस हुआ कि पैर से कुछ टकरा रहा है। देखा तो गोपाल था। गोपाल को उठाकर पाँच सौ का नोट दिया। गोपाल ने धन्यवाद नहीं किया। जब अचानक जगत लाल की पत्नी चल बसी तो उनके बेटे भी अपनी पत्नीयों को लेकर अलग हो गए। जगत लाल को अकेला छोड़ दिया। उतनी बड़ी हवेली में अकेले पड़े जगत लाल और सिर्फ नौकर गोपाल। जगत लाल द्वार गोपाल को दिया गया ’ दयादान ’ और गोपाल के द्वारा धन्यवाद भी न देने के एहसास ने वो कार्य किया कि जगत लाल के बेटे भी कहाँ कर पाते। गोपाल अपनी पत्नी को लेकर हवेली में ही रहने लगा और अपने मालिक जगत लाल की सेवा अन्तिम क्षण तक करता रहा।