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अक्षर, अक्षरों की संख्या, मात्रा गणना, गति-यति तथा नियमों में बँधी पद्य रचना छन्द कहलाती है। छन्दों का जिनको नहीं, लेशमात्र भी ज्ञान। नहीं परोसें छन्द में, निज मन का विज्ञान।। छन्द नहीं जो जानते, सुन लो एक सुझाव। मुक्तछन्द में ही रचो, निज मन के अनुभाव।। गणना अक्षर-शब्द की, होती है क्या चीज। छन्दों की कैसे भला, होगी उन्हें तमीज।। छेंप मिटाने के लिए, केवल करते तर्क। ऐसे लोगों से सदा, रहना सदा सतर्क।। घर में आकर जो नहीं, कर पाते शालाक्य। चुरा रहे बेखौफ वो, विद्वानों के वाक्य।। समालोचना में नहीं, चलती कोई घूस। लेखक के तो शब्द ही, होते हैं फानूस।। चला रहे जो माँग कर, अब तक अपना काम। दुनिया में होता नहीं, भिखारियों का नाम।।