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१. देखी जिसने रात भर,आतिश की बौछार । वो बच्चा अब ढूंढता,कचरे में त्योहार ।। २.बंटवारे ने खींच दी,घर में इक दीवार । पिक्चर का परदा बनी,लगी फिल्म 'परिवार' ।। ३.दुःख से एक सदस्य के,कुनबा दुखी तमाम । इक वाहन का हादसा ,मीलों लंबा जाम ।। ४.सफल सभा की बस यही,इतनी सी पहचान । जेबें काटे जेबकट ,श्रोता अन्तर्ध्यान ।। ५.रोटी की तस्वीर को,देखो करते चेट । भूख मिटा लो आँख की,फिर देखेंगे पेट ।। ६.भरकर कोई पेन में,लिखता प्यारी बात । मुख पर कोई ढोलता ,स्याही भरी दवात ।। ७. जो बरगद की मूल थे,पनपा जिनसे वंश । बैठ अकेले झेलते,तिरस्कार के दंश ।। ८.तब तक मजा उड़ान का,जब तक डोरी संग । कटी पतंगों के लिये ,अम्बर कितना तंग ।। ९.वर्तमान का हो भले ,कड़ा-कसैला स्वाद । लौटा करता है विगत ,बनकर मीठी याद ।। १०.सबै भूमि गोपाल की,अन्तिम यही निचोड़ । कब्ज़ा कर ले या भले,नक्शा तोड़-मरोड़ ।।