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तेज धूप और गर्मी पड़ रही है। जून का महिना आधा बीत चुका है। अब जल्दी ही बरसात का मौसम आने वाला है। बल्लू अपनेघर की छत सुधारने में लगा है। टूटे-फूटे कवेलू बदल रहा है। बल्लू छत सुधारने में इतना मषगूल है कि उसे होष ही नही है कि वह पसीने-पसीने हो रहा है। तेज दुपहरी में तप रहा है। उसका अपना घर है इसलिए धूप, पसीना, तकलीफ कुछ भी नहीं समझ आ रही है।
बल्लू के पिताजी डल्लू जी कई बार आवाज़ दे चुके हैं, बेटा थोड़ा आराम कर ले, जलपान ग्रहण कर ले और जब मौसम में हल्की ठंडक आ जाये तब छत का काम कर लेना। अब मुझसे ये तेरी जबरदस्ती की परेषानी मोल लेना बिल्कुल ठीक नहीं लग रही है। मुझे ये सब देखकर बड़ी तकलीफ़, पीड़ा हो रही है। बल्लू बेटा, तू मान जा और नीचे उतरकर थोड़ा आराम कर ले। बल्लू अपने पिताजी को कहता है ’’बस पिताजी थोड़ा और काम कर लूँ फिर नीचे आ जाऊंगा। बड़ी देर हो गई है तब भी बल्लू छत पर धूप में काम कर ही रहा है।
अब बल्लू के पिताजी से नहीं रहा जा रहा था। उन्होंने झल्लाते हुए बुद-बुदाया, मानता ही नहीं है। कैसा लड़का है। अब डल्लूजी अपने नाती पप्पू को गोद में उठा लेता है। पप्पू बल्लू का एक-डेढ़ साल का बड़ा प्यारा बेटा है।
डल्लूजी अपने नाती पप्पू को तपती चिलचिलाती धूप में गरम कवेलू पर, छत के ऊपर बिठा देता है। यह देख कर बल्लू अपने पिताजी पर बड़ा नाराज हो जाता है, कहता है कैसे सयाने बूढ़े आदमी हो, एक नन्हे से बच्चे को तपते कवेलू पर बिठा दिया। डल्लूजी अपने बेटे बल्लू से पूछता है। इसमें तुझे क्यों तकलीफ हो रही है। तब बल्लू बोलता है ’’अरे मैं इस बच्चे का बाप हूँ तो मुझे तकलीफ क्यों नही होगी।’’
अब डल्लूजी की बारी थी। डल्लू जी ने कहा घंटे दो घंटे से मैं तुझे समझा रहा हूँ कि बेटा अभी तेज धूप है। जब ठंडक आ जाए, तब काम कर लेना। तू पप्पू का बाप है, तुझे उसकी तकलीफ, समझ में आ रही है। अरे मैं भी तो तेरा बाप हूँ, तुझे मेरी तकलीफ, पीड़ा समझ में नहीं आ रही है।