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बासंती को देखकर आम गये बौराय। कोयल रगड़े गाल तब फूल रहे मुस्काय।। कलियों पर होने लगी भौंरों की भरमार। मौसम मीठा हो गया पेड़ गिराये लार।। लंबे दिन के बाद जब आती प्यारी रात। दुल्हन-सी सकुचा रही पूरी न होती बात।। जीजा के व्यवहार से साली मालामाल। देवर-भाभी साथ तब मौसम लाल-गुलाल।। ससुरालों में हो रही दामादों की भीर। बीते दिन को याद कर सास हुईं गंभीर।। मन का पंछी पूछता कहां बनायें नीड़। कविता प्यारी छोड़ती नहीं हमारी पीड़।। कितने गये बसंत पर गई न मन की हूक। प्यारे सुनता ही रहा कोयलवाली कूक।। मौसम ‘गड़बड़’ हो गया यारों उसके साथ। दिल की बातें क्या कहूं नहीं बढ़ाई हाथ।।