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उसका घमंड चढ़कर नीचे उतर चुका था, वो भी सातवें आसमान से, क्योंकि ऊंट पहाड़ के नीचे आ चुका था।
सेठ धनपत राय से बहुत ज्यादा कम, शोभराज की संपत्ति थी।
शोभराज ने सेठ धनपत राय के पांव छूते हुए कहा, ‘‘साहब जी, आपने मेरा घमंड तोड़ दिया। आज के बाद कभी घमंड नहीं करूंगा।’’
सेठ धनपत राय के विदा होने के बाद, महेश को शोभराज ने अकड़कर कहा, ‘‘तू अपनी औकात देख, और मेरा रुतबा और हैसियत देख। दस बार बुलवाया तब एक बार आया।’’
घमंड कभी चूर-चूर हुआ नहीं, कभी मरा नहीं। सवा शेर के सामने गीदड़ और गीदड़ के सामने सवा शेर होता ही रहा है।