
आलोक वृद्धाश्रम में रहनेवाले अपने रिश्तेदार आत्माराम से हर महीने मिलते। उनके बेटे द्वारा दिया वृद्धाश्रम का मासिक शुल्क भरते। महिने की दवाईयां देकर आत्माराम का हाल – चाल पूछते। वे हमेशा अपने बहू – बेटे की शिकायत करते कि ना मिलने आते हैं और ना ही फ़ोन करके स्वास्थ्य के बारे में पूछते हैं। आलोक हर बार उन्हें समझा – बुझा कर, सांत्वना देकर लौट आते थे।
हर महीने की तरह आलोक फिर वृद्धाश्रम पहुंचे। आत्माराम दरवाज़े पर ही खड़े हंसते – मुस्कुराते, गर्मजोशी से मिले। आलोक के आश्चर्य की सीमा न रही। हमेशा निराश – हताश दिखने वाले आत्माराम के स्वभाव में अचानक इतना बड़ा परिवर्तन कैसे आ गया ? आलोक के चेहरे पर उमड़ने वाले भावों से आत्माराम ने ताड़ लिया कि आलोक के मन में क्या चल रहा है। आलोक की जिज्ञासा शांत करते आत्माराम ने कहा , “ हाल ही में एक 67 वर्षीय सज्जन की पत्नी का देहांत हुआ है। बहू – बेटे से कहकर, स्वेच्छा से यहां एक महिने पहले रहने आये हैं। बड़े ही मिलनसार, हंसमुख, जिंदादिल इंसान हैं। हर हफ्ते उनके परिवार वाले फ़ोन करते हैं। बहू – बेटे बच्चों के साथ महिने में दो बार मिलने भी आए हैं। इस सज्जन के पास रोचक, मनोरंजक घटनाओं और चुटकुलों का पिटारा है। गंभीर वार्तालाप के बीच भी उस घटना से संबंधित कोई हास्य – व्यंग प्रसंग या चुटकुला सुनाकर वातावरण को हल्का – फुल्का कर देते हैं। उनके आने से वृद्धाश्रम में बहार आ गई है। उनकी सकारात्मक, आनंददायक और उत्साहजनक बातों से हमारे मन में उमंग, उत्साह और उल्लास का संचार होता है। उनके स्वभाव के कारण हमने उन्हें आनंद कुमार नाम दिया है। आओ मैं तुम्हें उनसे मिलाता हूँ। “
आलोक जब आनंद कुमार के पास पहुंचे, तो देखा सभी वृद्धजन उन्हें घेरकर बैठे थे। वे अपनी लच्छेदार बातों से सबका मनोरंजन कर रहे थे। कल तक जिन वृद्धजनों के मुख पर मायूसी छाई रहती थी , आज उनके मुरझाए चेहरों पर मुस्कान साफ दिखाई दे रही थी। कुछ तो कहकहे , ठहाके लगाते हुए लोट – पोट हो रहे थे। आलोक ने आनंद कुमार से मिलकर उनसे कहा , “ आपकी बदौलत अब इस वृद्धाश्रम का नाम बदलकर आनंद आश्रम रखना चाहिए। अगर हर वृद्धाश्रम में आपके जैसा एक आदमी हो तो सभी वरिष्ठ लोग हंसी – ख़ुशी वृद्धाश्रम में रहने के लिए राज़ी हो जाएंगे। “ अपनी प्रशंसा सुनकर , आनंद कुमार के चेहरे की मनमोहक मुस्कान बिना कुछ कहे , सब कुछ बयां कर रही थी ।