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मधुसूदन बाबू ने देखा-देखी ही सही, मगर अपने छोटे-मोटे खर्चे में कटौती करके डाइनिंग टेबल बनवाई। अपने एक बेटा और एक बेटी तथा एक पत्नी के साथ बैठकर खाना खाते। डाइनिंग टेबल आने के पहले भी पूरा परिवार एक साथ बैठकर खाना खाता था।
मधुसूदन बाबू अकसर कहते, ‘‘बेटे की नौकरी लग जाएगी, बाहर चला जाएगा तो ये कुर्सियां उनके आने का रास्ता देखेंगी।’’
आज उनकी बेटी की शादी हो चुकी है। बेटा अमित अपनी पत्नी को लेकर सात समंदर पार चला गया है। आज सचमुच मधुसूदन बाबू की डाइनिंग टेबल की कुर्सियां बेटे और बहू का इंतजार करती हैं।
सात समंदर पार रह रहे अमित के डाइनिंग टेबल की कुर्सियां मां-पिता के इंतजार में खाली पड़ी रहती हैं।
मधुसूदन बाबू के डाइनिंग टेबल की सारी कुर्सियां साल में एक बार मरती हैं, कुछ समय के लिए।