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दो जिगरी दोस्त थे। दोनों दोस्त अपना-अपना काम खत्म करके शाम को जब थके-हारे मिलते थे तो दोनों एक-दूसरे के काम की प्रशंसा करते। दोनों अपने काम को कठिन और दूसरे के काम को आसान समझते थे।
एक दिन लौहार ने अपने मित्र बढ़ई से कहा, ‘‘मित्र, तुम्हारा काम तो बहुत ही आसान है और मेरा काम तो बहुत ही मुश्किल है।’’
बढ़ई ने कहा, ‘‘नहीं मित्र, तुम्हारा काम तो बहुत ही आसान है, सिर्फ ताकत लगाकर चोट देना पड़ता है। मगर हमको अपना काम बारीकी से करना पड़ता है।’’
दोनों मित्र ने एक महीना अपना काम बंद करके अपने मित्र वाला काम करने की ठानी।
बढ़ई ने हथौड़ा इतनी जोर से मारा कि उसकी नस खींच गई और कील की शक्ल बिगड़ गई। जलता कोयला छिटककर बढ़ई की शक्ल बिगाड़ गया।
लौहार मित्र ने लकड़ी पर कील टिकाकर हथौड़े का ऐसा प्रहार किया कि लकड़ी के चार टुकड़े हो गए और कील उछलकर गाल छेद गई।
दोनों मित्र घायल हुए। अस्पताल में बहुत दिन रहने के बाद एक-दूसरे से मिले तो लौहार मित्र ने कहा, ‘‘मित्र, कैसे तुम इतना अच्छा काम कर लेते हो? मेरे तो वश की बात नहीं है। मेरा काम मेरे लिए आसान है और तुम्हारा काम तुम्हारे लिए आसान है।’’
बढ़ई ने कहा, ‘‘हां मित्र, सही समझे, अपना काम सबसे आसान, क्योंकि हम अपने काम को वर्षों से करते चले आ रहे हैं और इसी में पारंगत हैं।’’