
गर्मी के दोहे:
पानी-पानी प्राण......
पानी-पानी प्राण......
घनश्याम बादल
सूरज बदला ले रहा , गरमी करे प्रहार । धूप हुई बैरन बड़ी , छांव बांटती प्यार।। नदिया सूखी नार सी , पोखर हैं बेहाल । बादल खाली घूमते , फिरें बजाते गाल ।। पानी ‘पानी’ पा रहा , पानी-पानी प्राण । किरणें ऐसे बींधती , जैसे बींधें बाण ।। बादल अब बा-दल चलें , धरती रही पुकार । या तो मौला तू बरस , या ले, ले अब प्राण ।। फा़के़ से बुढ़िया मरे , गरमी मरे जवान । बनिया मंदी से मरे , सूखे मरे किसान ।।