
हमारे पड़ोसी श्री बसंत जी अपनी तेरह महीने की नाती को स्ट्रोलर में लेकर घर से बाहर आए और मुझे सामने हरियाली के आस पास टहलते देखकर कहाः "नमस्कार बहन जी"
"नमस्कार भाई साहब. आज नन्हें शहज़ादे के साथ सैर हो रही है क्या?"
" हाँ यह तो है पर एक कारण इसका और भी है. इस नन्हें शिकारी से अंदर बैठे महमानों और घरवालों को बचाने का यही एक तरीका है."
"वह कैसे ?" मैंने अनायास पूछ लिया.
" अजी क्या बताऊँ , सब खाना खा रहे हैं, और यह किसीको एक निवाला खाने नहीं देता. किसी की थाली पर, तो किसी के हाथ के निवाले पर झपट पड़ता है और................!."
अभी उनकी बात ख़त्म ही नहीं हुई कि एक कौआ जाने किन ऊँचाइयों से नीचे उतरा और बच्चे के हाथ में जो बिस्किट था, झपट कर अपनी चोंच में ले उडा़. मैंने उड़ते हुए पक्षी की ओर निहारते हुए कहा.." बसंत जी, देखिये तो असली शिकारी कौन है?" और वे कुछ समझ कर मुस्कराये और फिर ठहाका मारकर हंस पड़े.