
अधेड़ उम्र का श.ख्स इज्जत लुटने को अमादा था, लड़की का घिघियाना, हाथ जोड़ना, मिन्नतें करना उसको कुछ नहीं नजर आ रहा था, वो तो अपने जिस्म की तपिस को किशोरी के साथ बुझाना चाहता था। किशोरी ने धमकी देते हुए कहा ’’ मैं खुद को खत्म कर लुंगी। ’’ अधेड़ व्यक्ति ने सावधानी से उसके हाथ से टुटी हुई बोतल छीन ली, और टुट पड़ा उसपर। किशोरी चेहरा पहचान में आते ही, अपनी इज्जत बचाने की सफल कोशिश करते हुए बोली ’’ अंकल मैं आपके दोस्त ज्ञानरंजन की बेटी हूं। ’’ अधेड़ व्यक्ति थोड़ा सा झेंपा, ज्ञानरंजन से निपट पाना उसके बस की बात नहीं थी और समाज मे इज्जत गंवाने का डर उसको सताने लगा , उसके मन से अवाज आई मैं बलात्कारी नहीं बनना चाहता। ये डर उसके मन-मस्तिष्क पर इतना हावी हो गया कि उसने , अपनी इज्जत को सुरक्षित समझ अपने अस्त-व्यस्त कपड़े ठीक कर चुकी किशोरी का गला चाकु से रेत डाला। अब उसको समाज का डर नहीं सता रहा था।