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‘‘और कितनी मोहलत लोगे?’’ मालिक ने नौकर से पूछा।
‘‘मालिक, बस कुछ महीनों का समय और दे दीजिए।’’ नौकर ने हाथ जोड़कर विनम्रतापूर्वक कहा।
‘‘नहीं, और मोहलत नहीं दे सकता। पहले ही बहुत समय ले चुके हो।’’ मालिक की बात में तुनकमिजाजी आ गई।
‘‘मालिक विश्वास कीजिए।’’
‘‘विश्वास करके ही रुपया दिया था, तुम्हारी बीमारी के समय। रुपया भी नहीं लौटाया और मेरे पास नौकरी भी छोड़ दी तूने।’’
नौकर का पूरा ध्यान अपना गिरेबान छुड़ाने का था। मालिक का गुस्सा सातवें आसमान पर चला गया। नौकर अभी समझाने का प्रयास कर ही रहा था कि गुस्सा नौकरी छोड़ने का है या रुपया नहीं लौटा पाने का।
मालिक ने रॉड उठाकर ताबड़तोड़ बरसाना शुरू कर दिया। मालिक ने इतना आपा खो दिया कि रॉड उसके सिर पर दे मारा।
नौकर लहूलुहान होकर गिर गया।
मालिक ने अपने मुंह से तंबाकू निकालते हुए कहा, ‘‘जाओ, जब तक ठीक नहीं हो जाते तब तक की मोहलत देता हूं।’’ मालिक आगे की ओर बढ़ गया।