
असत्य कथा
रवीन्द्र दास
कोई कानून की किताब नहीं कहती कि स्त्रियों का शोषण करो निर्धनों, मजलूमों का शोषण करो शोषण की बात तो धर्मशास्त्रों में भी नहीं लिखा है कहीं भी स्पष्ट यह तो मानुषी हुनर है कि वह मनुष्य रहते हुए कर लेता अमानुषिक कृत्य शोषित होते हुए कर लिप्त रहता है शोषण में इतना तो, ख़ैर, है कि क्रूर दिखे बिना कर लेता है क्रूरता संवेदनशीलता एक मेकअप है जो है भी और नहीं भी है जो शरारत, भूल, ग़लती और अपराध के ध्रुवों पर डोलती रहती है सच बहुधा ऐनवक़्त पर बाथरूम में पाया जाता है और समयबद्ध न्यायालय को करना होता है निर्णय दुनिया इतनी बड़ी है कि धमाके की आवाज़ नहीं पहुँचती है बहुत दूर पहुँचती है अफवाहें कान में घुसती हुई, जुबान से बहकती हुई